लुप्तप्राय भाषाओं को सुरक्षा और संरक्षण के लिए योजना क्या है?
इस योजना की शुरुआत 2013 में हुई थी। यह योजना शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। इस योजना की निगरानी का कार्य केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) द्वारा किया जा रहा है।
SPPEL योजना का उद्देश्य
इस योजना के उद्देश्यों को हम निम्न बिंदुओं में समझ सकते हैं-
- देश की उन भाषाओं का दस्तावेजीकरण और संग्रह करना जिनके निकट भविष्य में लुप्तप्राय या संकटग्रस्त होने की संभावना है।
- डिजिटल प्रलेखन के माध्यम से इन लुप्तप्राय भाषाओं को सहेजना और संरक्षित करना
SPPEL योजना कि विशेषताएं
- इस योजना के परिचालन के लिए CIIL ने पूरे भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों के साथ सहयोग स्थापित किया है।
- वर्तमान में प्रलेखन के लिए 117 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है।
- आने वाले वर्षों में लगभग 500 लुप्तप्राय भाषाओं के व्याकरण, शब्दकोश और जातीय-भाषाई प्रोफाइल के प्रलेखन का पूरा होने का अनुमान है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण के लिए दो योजनाएं भी शुरू की हैं-
- भारत में स्वदेशी और लुप्तप्राय भाषाओं में अध्ययन और अनुसंधान के लिए राज्य विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता
- केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लुप्तप्राय भाषाओं के लिए केंद्रों की स्थापना
- इस योजना के क्रियान्वयन के लिए देश को पाँच जोन में बाँटा गया है- Northern Zone, Southern Zone, West Central Zone, East Central Zone, North-East Zone
- लुप्तप्राय भाषा- जो भाषाएं 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाति हैं, उन्हें लुप्तप्राय भाषाओं की श्रेणी में रखा जाता है।
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान क्या है? | What is CIIL? | Central Institute of Indian Languages
केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) की स्थापना 1969 में की गई थी, इसका मुख्यालय मैसूर (कर्नाटक) में है।
CIIL का उद्देश्य
- भाषा के मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देना और उनकी सहायता करना।
- कंटेंट का निर्माण कर सभी भारतीय भाषाओं के विकास में योगदान देना।
- अल्पसंख्यक और जनजातीय समुदाय के भाषाओं की रक्षा करना और उनका दस्तावेजीकरण करना।
- भारतीय भाषाओं को पढ़ाकर भाषाई सद्भाव को बढ़ावा देना।
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