राज्य का प्रमुख ‘राज्यपाल’ कहलाता है। उसकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि राज्य सरकार संविधान के नियमों-अधिनियमों के अनुसार अपना कामकाज चलाए।
राज्य की कार्यपालिका के अंग
राज्य की कार्यपालिका को हम निम्न 4 भागों में समझ सकते हैं-
- राज्यपाल
- मुख्यमंत्री
- मंत्रीपरिषद
- महाधिवक्ता
राज्यपाल
जैसा कि हम पढ़ चुके हैं कि राष्ट्रपति का पद केंद्र की कार्यपालिका में प्रमुख भूमिका में होता है, ठीक उसी प्रकार राज्य में राज्यपाल का पद होता है।
राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं। यदि हम तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो जिस प्रकार केंद्र स्तर पर राष्ट्रपति कार्य करते हैं उसी प्रकार राज्य स्तर पर राज्यपाल का कार्य होता है।
राज्यपाल का पद एवं नियुक्ति
हमारे संविधान के अनुच्छेद 152 में राज्यपाल के पद का वर्णन मिलता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 में बताया गया है कि राज्यों के लिए राज्यपाल होंगे। हालाँकि एक से अधिक राज्यों के लिए भी एक राज्यपाल की नियुक्ति की जा सकती है।
राज्यपाल की शक्ति और कार्य
संविधान के अनुच्छेद 154 में राज्यपाल को विभिन्न प्रकार की शक्तियां दी गई हैं जिनका प्रयोग वह स्वयं, अपने अधीनस्थ या मंत्रीपरिषद के माध्यम से करते हैं।
कार्यकारी या कार्यपालिका शक्तियां
- नियुक्ति संबंधी अधिकार- राज्य के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाति है।
- मुख्यमंत्री की सलाह पर ही मंत्रीपरिषद की नियुक्ति भी राज्यपाल द्वारा ही की जाती है।
- राज्य वित्त आयोग की नियुक्ति संबंधी अधिकार भी राज्यपाल को प्राप्त है।
- राज्य के लोक सेवा आयोग बोर्ड के सदस्यों का चयन।
- राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति का चयन।
- राज्य चुनाव आयुक्त, जिला जज की नियुक्ति।
- राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति राज्य के उच्च न्यायालयों के जजों की नियुक्ति करते हैं।
अनुच्छेद 356 के तहत यदि राष्ट्रपति शासन राज्यों में लगाया जाता है तो राज्यपाल राज्य का वास्तविक प्रमुख हो जाता है।
राज्यपाल की विधायी शक्तियां
विधेयक से जुड़ी कई शक्तियां राज्यपाल को प्राप्त हैं-
- विधानमंडल का सत्र बुलाना, सत्र समाप्त करना, बैठक का आयोजन करवाना, विधेयक (Bill) पेश करवाना
- कोई भी bill तब तक पारित नहीं माना जाता जब तक की राज्यपाल के हस्ताक्षर उसपर नहीं हो जाते।
- राज्य के मंत्रीपरिषद का 1/6 सदस्यों का मनोने राज्यपाल के द्वारा किया जाता है।
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां
- धन विधेयक को जब विधेयक के रुप में पेश करने के लिए ले जाया जाता है तो उस पर पहले राज्यपाल के हस्ताक्षर लेने होते हैं। उसके बाद ही उस विधेयक या बिल को विधानमंडल में पेश किया जाता है।
- वार्षिक बजट पेश करने से पहले भी राज्यपाल की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
- आकस्मिक निधि- आपातकाल से निपटने के लिए इस निधि को बनाया जाता है।
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां
- क्षमादान की शक्ति- अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को यह शक्ति प्राप्त है (केवल राज्य सूची के विषयों पर)।
- मृत्यु दंड को क्षमा नहीं कर सकते।
राज्यपाल की स्वविवेक शक्ति
- गठबंधन की सरकार के टूटने की स्थिति में राज्यपाल को यह शक्ति है कि वह किसी एक राजनैतिक पार्टी को न्योता दे कर सरकार बनाने के लिए कह सकते हैं।
- किसी दल को सदन में बहुमत ना मिलने की साठीती में भी राज्यपाल के पास यह शक्ति है कि वह किसी एक राजनैतिक दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं।
- वीटो शक्ति– किसी बिल के सदन से पारित होने के बाद राज्यपाल को यह शक्ति है की वह उस बिल को राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।
राज्यपाल की नियुक्ति
- राज्यपाल की नियुक्ति अनुच्छेद 155 के तहत की जाती है। राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
- राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार की सलाह पर की जाती है।
- इस प्रकार से, राज्यपाल राज्य में केंद्र सरकार के एजेंट के रुप में कार्य करते हैं।
राज्यपाल का कार्यकाल
- साधारणतः राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
- अनुच्छेद 156 के अनुसार राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत (इच्छानुसार)
राज्यपाल पद के लिए योग्यता
अनुच्छेद 157 और 158 में राज्यपाल के पद के लिए योग्यता निर्धारित की गई है-
- भारत के नागरिक हो
- 35 वर्ष आयु पूरी कर चुके हो
- लाभ के पद पर न हो
- वे संसद (लोकसभा, राज्यसभा), विधानमंडल के सदस्य न हो
राज्यपाल पद की शपथ
अनुच्छेद 159 में राज्यपाल की शपथ का वर्णन किया गया है। राज्यपाल को यह शपथ संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय (High Court) के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है।
क्षमादान की शक्ति
- हमारे संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को भी क्षमादान देने का अधिकार है, परंतु ये क्षमादान केवल राज्य सूची के विषयों पर ही दिया जाता है।
- राज्यपाल मृत्युदंड को क्षमा नहीं कर सकते।
अध्याधेश संबंधी शक्तियां
अनुच्छेद 213 में अध्याधेश का वर्णन है, जब विधानसभा कार्य करना बंद कर दे और किसी आवश्यक कानून को राज्यपाल अपने हस्ताक्षर द्वारा उसे कानून के रुप में बदल सकते हैं, इसे अध्याधेश कहते हैं। केंद्र स्तर पर यह राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है (अनुच्छेद 123)।
किसी अध्याधेश के बनने के बाद अगली विधानमंडल की बैठक के 6 सप्ताह के भीतर उसे पारित करना होता है, यदि उस अध्याधेश को पारित नहीं किया जाता तो ऐसे में उस अध्याधेश को निरस्त माना जाता है।
एंग्लो-इंडियन का चयन
संविधान के अनुच्छेद 333 के तहत राज्य की विधानसभा में 1 एंग्लो-इंडियन सदस्य का चयन राज्यपाल के मनोनय के द्वारा किया जाता है।
भारतीय संविधान के 104वें संशोधन के बाद इस अनुच्छेद को निरस्त कर दिया गया है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
राज्य का संवैधानिक प्रमुख- राज्यपाल
राज्य का वास्तविक प्रमुख- मुख्यमंत्री
केंद्र की कार्यपालिका– राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रीपरिषद, महान्यायवादी
केंद्र की विधायिका– संसद (राज्यसभा, लोकसभा)