संविधान की इस शृंखला में, आज हम राज्य सभा और इससे जुड़े संसद के महत्वपूर्ण तथ्यों को पढ़ेंगे। इससे पहले हम विधायिका और उसके अंगों जैसे- विधानसभा, विधानपरिषद और राज्यपाल आदि के बारे में पहले ही पढ़ चुके हैं।
राज्य सभा के बारे में पढ़ने के लिए हमें यह जानना बहुत जरूरी है कि संसद की संरचना कैसी होती है?
जैसा की हम संसद (अनुच्छेद 79) के बारे में पढ़ चुके हैं कि केंद्रीय स्तर पर संसद के तीन अंग होते हैं-
- राष्ट्रपति (अनुच्छेद 52)
- राज्य सभा (अनुच्छेद 80)
- लोकसभा (अनुच्छेद 81)
राज्य सभा जिसे संसद का उच्च सदन (Upper House) भी कहा जाता है। इसे और भी नामों से जाना जाता है जैसे- स्थायी सदन (Permanent House), विशेषज्ञ सदन।
इसे विशेषज्ञ सदन कहा जाता है क्यूंकि इसमें कई प्रकार के विशेषज्ञ होते हैं। जोकि मनोनय के द्वारा या कहें कि राज्यों के द्वारा भेजे गए विशेषज्ञों का सदन भी है।
राज्य सभा की संरचना
- अधिकतम सदस्यों की संख्या– 250
- इन 250 सदस्यों में यह निश्चित किया गया है कि 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से होंगें और शेष 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाएंगे।
- वर्तमान में राज्य सभा में 245 सदस्य हैं जिसमें कि 233 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों से हैं जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं।
- राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत ये 12 सदस्य अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, जैसे- कला, साहित्य, विज्ञान, खेल, समाज-सेवा आदि।
- अपने क्षेत्र विशेष में अपने योगदान एवं भूमिका के कारण इन मनोनीत सदस्यों को राज्य सभा कि सदस्यता राष्ट्रपति द्वारा दी जाती है।

राज्य सभा में सदस्यों का निर्वाचन
राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों से सदस्य | मनोनीत सदस्य |
अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा (अधिकतम 238 सदस्य) | राष्ट्रपति के मनोनय द्वारा (12 सदस्य) |
राज्यों की विधान सभा के द्वारा राज्य सभा के सदस्यों का चयन किया जाता है।
जैसा कि हम अनुसूची 4 में पढ़ चुके हैं कि राज्य सभा की सीटों का आवंटन राज्यों की जनसंख्या के आधार पर किया गया है। इस प्रकार जिस राज्य की जनसंख्या अधिक होगी उस राज्य की राज्यसभा में सीटें भी अधिक होंगी।
इसी प्रकार सभी राज्यों की विधान सभाओं, लोकसभा एवं राज्य सभा में भी सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया गया है। जैसे- उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है।
इसीलिए सबसे अधिक राज्य सभा की सीटें (31) उत्तर प्रदेश को प्राप्त हैं।
राज्य सभा सदस्य बनने के लिए योग्यताएं
- भारत का नागरिक हो
- आयु न्यूनतम 30 वर्ष हो
- किसी लाभ के पद पर ना हो (किसी सरकारी सेवा में कार्यरत ना हो)
- मानसिक रुप से स्वस्थ हो
- यदि संसद (राज्य सभा सदस्य बनने के लिए) अन्य कोई कानून बनाए तो उसकी मान्यताओं को भी पूरा करना चाहिए
राज्य सभा एवं इसके सदस्यों का कार्यकाल
कार्यकाल– राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव 6 वर्षों के लिए किया जाता है।
चुनाव– राज्य सभा के एक तिहाई (1/3) सदस्य प्रति 2 वर्ष में में अवकाश ग्रहण करते हैं।
राज्य सभा के सभापति और उप-सभापति
राज्य सभा के सभापति सदैव उप-राष्ट्रपति होते हैं।
राज्य सभा में सभापति के एक साथ-साथ उप-सभापति भी होते हैं, जिनका चयन राज्य सभा सदस्यों में से ही किया जाता है।

राज्य सभा के सभापति एवं उप-सभापति के कार्य
सभापति | उप-सभापति |
राज्य सभा की बैठक का आयोजन करवाना बैठक में बोलने की अनुमति देना बैठकों का संचालन करना | सभापति की अनुपस्थिति में राज्य सभा की बैठकों का आयोजन एवं संचालन करानाअगर किसी परिस्थिति में उप-राष्ट्रपति राष्ट्रपति के स्थान पर कार्य करते हैं तो उप-सभापति ही राज्य सभा का संचालन करते हैं। |

राज्य सभा की विशेषताएं
- हमारे संविधान का अनुच्छेद 249 के अनुसार यदि राज्य सभा दो-तिहाई बहुमत के साथ किसी राज्य सूची के विषय को यह मान्यता देने का अधिकार राज्य सभा को है कि वह विषय राष्ट्रीय महत्व का है या नहीं। और यदि है तो उस पर केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
- ऐसे किसी कानून को पहले राज्य सभा में पेश किया जाता है और उसके बाद उसे लोकसभा में भेजा जाता है।
- अनुच्छेद 312 जिसमें अखिल भारतीय सेवाओं (All India Services) को बताया गया है।
- जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में 3 तरह की (IAS, IPS, IFS) अखिल भारतीय सेवाएं हैं। इन सेवाओं से जुड़ा कोई कानून या नई सेवा का प्रस्ताव भी पहले राज्य सभा में ही लाया जाता है।
- उप-राष्ट्रपति :- जैसा कि अभी हमने पढ़ा राज्य सभा के सभापति उप-राष्ट्रपति होते हैं; उप–राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया राज्य सभा में ही शुरू होती है।
- धन-विधेयक :- किसी भी धन विधेयक को पहले लोकसभा में पारित किया जाता है। उसके बाद ही उसे राज्य सभा में भेजा जाता है और यदि राज्य सभा उस विधेयक को 14 दिन में पारित या स्वीकार नहीं करती है तो उसे स्वतः ही पारित मान लिया जाता है।
छोटी-छोटी मगर बड़े काम की बातें
- राज्य सभा में सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए जाते हैं। ताकि यह अपने राज्यों की आकांक्षाओं को सदन में रख सकें।
- राज्य सभा को कभी भंग नहीं किया जा सकता, इसलिए ही संसद के इस सदन को स्थायी सदन कहा जाता है।
- जैसा कि हम पहले भी पढ़ चुके हैं कि दिल्ली और पुदुचेरी ऐसे दो केंद्र शासित प्रदेश हैं जहाँ विधानसभा भी है। विधानसभा के द्वारा ही राज्यसभा के सदस्यों का चयन होता है तो इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि राज्य सभा के सदस्यों में राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों दोनों से सदस्य होते हैं।
- अप्रत्यक्ष चुनाव– ऐसी चुनाव प्रक्रिया जिसमें जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि भाग लेते हैं।
- जिस अनुपात में किसी विधान सभा में विभिन्न दलों में सीटें बँटी होती हैं उसी अनुपात में उन दलों को राज्य सभा में अपने प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिलता है।
- राज्य सभा में सीटों का आवंटन राज्यों की जनसंख्या के आधार पर किया गया है।
- वर्तमान लोकसभा और राज्य सभा में सीटों का आवंटन 1971 की जनगणना के आधार पर है।
- अपनी चुनावी प्रक्रिया के कारण ही राज्य सभा को स्थायी सदन कहा जाता है।
- राज्य सभा के अध्यक्ष उप-राष्ट्रपति होते हैं जोकि उस सदन के सदस्य नहीं होते हैं।
- उप-राष्ट्रपति को राज्य सभा के सभापति के रुप में वेतन दिया जाता है।
- राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों का होता है। इसे और अधिक समझने के लिए ‘हमारे संविधान की अनुसूचियाँ’ पढ़ें।
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