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लोकसभा | House of People | GS Blog

संविधान की इस शृंखला में आज हम लोकसभा के बारे में पढ़ने वाले हैं। इससे पहले हम संविधान सभा, कार्यपालिका, राष्ट्रपति, राज्य सभा आदि के बारे में पढ़ चुके हैं।

जैसा की हम जानते हैं केंद्र स्तर पर संसद के तीन भाग होते हैं-

  1. राष्ट्रपति
  2. राज्य सभा
  3. लोकसभा

आज हम लोकसभा के बारे में समझने वाले हैं। जिसमें लोकसभा की संरचना कैसी होती है? लोकसभा के सदस्य कैसे चुने जाते हैं? जैसे अन्य कई प्रश्नों को समझने में आपको आसानी होगी।

लोकसभा का वर्णन हमारे संविधान के अनुच्छेद 81 में किया गया है। लोकसभा को जनता का सदन (House of People), निम्न सदन (Lower House), अस्थायी सदन, लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है।

क्यूंकि लोकसभा के सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं इसलिए इसे प्रत्यक्ष सदन के नाम से भी जाना जाता है।

लोकसभा के सदस्यों की संरचना

  • लोकसभा की कुल सीटें 552 हैं।
  • इन 552 सीटों को इस प्रकार बाँटा गया है-
    • 530 – राज्यों के लिए
    • 20 – केंद्र शासित प्रदेशों के लिए
    • 2 – आंग्ल-भारतीयों के लिए (राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत)
  • 1952 से लेकर 2020 के बीच, भारत सरकार की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति, आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 अतिरिक्त सदस्यों को मनोनीत कर सकते थे, जिसे 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा, जनवरी 2020 में समाप्त कर दिया गया था। आज लोकसभा में कुल सीटों की संख्या 550 है।
  • वर्तमान में लोकसभा के सदस्यों की संख्या 543 है।

लोकसभा के सदस्यों का चयन

प्रत्यक्ष रुप से चयन

लोकसभा में सदस्यों का चयन प्रत्यक्ष रुप से होता है, अर्थात जनता मतदान द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और लोकसभा में भेजती है। जबकि राज्यसभा में सदस्यों का चयन राज्यों की विधानसभा द्वारा किया जाता है।

सार्वभौम मताधिकार

सार्वभौम मताधिकार का अर्थ है कि मतदान में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को भाग लेने का अधिकार मिलता है।

फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम

इसे हम पहले आओ सब ले जाओ के रुप में भी याद रख सकते हैं। जैसा की हम जानते हैं लोकसभा की सदस्यता के लिए बहुत सारे उम्मीदवार खड़े होते हैं; उन सभी उम्मीदवारों में से जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत मिलते हैं उसे ही लोकसभा की सदस्यता मिलती है। इस प्रक्रिया में मतों का कोई निश्चित प्रतिशत नहीं है।

लोकसभा सदस्य की योग्यताएं

  • भारत का नागरिक हो
  • 25 वर्ष आयु पूरा कर चुका हो
  • लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए (सरकारी नौकरी)
  • मानसिक रुप से स्वस्थ होना चाहिए

लोकसभा का कार्यकाल

लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। अर्थात लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। यदि 5 वर्ष पूर्ण होने से पूर्व ही सरकार सदन में बहुमत खो देती है तो लोकसभा का विघटन पहले भी किया जा सकता है।

संविधान का अनुच्छेद 85 राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह प्रधानमंत्री के कहने पर या उनके अनुरोध पर लोकसभा का समय से पूर्व विघटन कर सकते हैं।

लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव एवं कार्य

लोकसभा का सत्र शुरू होते ही सबसे पहली बैठक में लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चयन किया जाता है।

  • अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है।
  • लोकसभा अध्यक्ष को लोकसभा के सदस्यों में से ही चुना जाता है; जबकि राज्यसभा में सभापति को उप-राष्ट्रपति के रुप में चुना जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 93 से 97 में लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पद एवं शक्तियों के बारे में बताया गया है।
  • लोकसभा अध्यक्ष का मूल कार्य बैठक का संचालन करना होता है।  
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लोकसभा के वर्तमान अध्यक्ष श्री ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां

  • किसी विधेयक को धन विधेयक घोषित करना।
  • अनुच्छेद 108 के तहत संचालित होने वाले संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करना।
  • सदन की बैठक के दौरान किसी को बोलने की अनुमति भी लोकसभा अध्यक्ष द्वारा ही दी जाती है।
  • सदस्यों के बोलने के क्रम का निर्धारण करना।
  • सदन में किसी विधेयक या बिल पर मतों की संख्या बराबर होने पर लोकसभा अध्यक्ष का मत निर्णायक मत की भूमिका निभाता है।

लोकसभा अध्यक्ष को पद से हटाने की प्रक्रिया

  1. लोकसभा के सभी सदस्य प्रस्ताव पारित करके ही लोकसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटा सकते हैं।
  2. लोकसभा अध्यक्ष को अपना त्यागपत्र लोकसभा उपाध्यक्ष को सौंपते हैं।
  3. यदि लोकसभा के उपाध्यक्ष को अपना त्यागपत्र देना हो तो वे अपना त्यागपत्र लोकसभा अध्यक्ष को सौंपते हैं।

लोकसभा में आरक्षण संबंधी प्रावधान

  • अनुच्छेद 330- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 के तहत लोकसभा में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। अर्थात् 84 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए एवं 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई हैं।
  • अनुच्छेद 331- संविधान के इस अनुच्छेद के तहत लोकसभा में 2 सीटें एंग्लो-इंडियन के लिए आरक्षित की गई थीं। जिनका चयन मनोनय के द्वारा किया जाता था। वर्तमान समय में इसे समाप्त कर दिया गया है।

लोकसभा और राज्य सभा में भिन्नता

  • लोकसभा में जनता द्वारा सदन के सदस्यों का सीधा चुनाव होने के कारण यह सदन अधिक मूल्यवान होता है।
  • सरकार अर्थात् मंत्रीपरिषद को लोकसभा के प्रति उत्तरदायी रहना पड़ता है।
  • सरकार बनाने के लिए सदैव लोकसभा में ही बहुमत प्राप्त करना होगा।
  • अनुच्छेद 110- धन विधेयक सदैव पहले लोकसभा में पेश होगा। तथा लोकसभा से पारित होने के बाद राज्य सभा में जाएगा और राज्य सभा में इसे पारित होने के लिए 14 दिन का अवसर मिलेगा।
    • यदि 14 दिन में धन विधेयक को राज्य सभा पारित नहीं करती है तो इस बिल को स्वतः पारित माना जाता है।
  • अनुच्छेद 108- संविधान के इस अनुच्छेद के तहत संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान है, जिसकी अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती है। तथा लोकसभा की सीटें अधिक होने के कारण संयुक्त बैठक में लोकसभा के सदस्यों की वरीयता अधिक होती है।

लोकसभा में विपक्ष

लोकसभा में जिस प्रकार पक्ष का नेता प्रधानमंत्री होता है उसी प्रकार विपक्ष का भी एक नेता चुना जाता है। जो भी विपक्षी दल सर्वाधिक सीटें लेकर आता है उसे विपक्ष का दर्जा दिया जाता है। लेकिन यदि विपक्ष में कोई दल सर्वाधिक सीटें प्राप्त नहीं कर पाता है तो लोकसभा की 1/10 सीटें प्राप्त करने वाले दल को विपक्ष घोषित किया जाता है।

इस प्रकार फिर इस विपक्षी दल का एक नेता चुना जाता है जिसे कैबिनेट स्तर का दर्जा दिया जाता है। यह व्यवस्था 1997 में की गई थी, इससे पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी।

लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री अधीर रंजन चौधरी

लोकसभा सदस्य को पद से हटाने की स्थिति

संसद के दोनों सदनों में से किसी के भी सदस्य यदि बिना संसद की अनुमति के 60 दिन से अधिक सदन में अनुपस्थित रहते हैं तो उनकी सदस्यता भंग की जा सकती है।

ऑकसभा से जुड़े अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • विधान सभा में भी फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम का प्रयोग किया जाता है।
  • संसद के विभिन्न पदों के लिए न्यूनतम आयु
    • राष्ट्रपति- 35 वर्ष
    • राज्यसभा का सदस्य- 30 वर्ष 
    • लोकसभा का सदस्य- 25 वर्ष
  • आपातकाल (अनुच्छेद 352) की स्थिति में लोकसभा का कार्यकाल अनुच्छेद 83(2) के तहत 1 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है।
  • 42वें संविधान संशोधन 1976 में लोकसभा के कार्यकाल को बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया था।
  • 44वें संविधान संशोधन 1978 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में लोकसभा के कार्यकाल घटाकर फिर से 5 वर्ष कर दिया गया था।
  • किसी भी कारणवश यदि लोकसभा अध्यक्ष सदन में उपस्थित नहीं होते हैं तब ऐसी स्थिति में लोकसभा के उपाध्यक्ष उनका कार्यभार संभालते हैं।
  • यदि किसी स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों ही सदन में अनुपस्थित होते हैं तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा के ही किसी सदस्य को अध्यक्ष चुन लिया जाता है और सदन की कार्यवाई को संचालित किया जाता है।
  • किसी भी चुनाव में 1/6 मतदाताओं की वह संख्या है, जिससे कम मत प्राप्त होने पर किसी उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त हो जाती है।
    • यह जमानत राशि चुनाव आयोग के द्वारा तय की जाती है।
  • 1/10 कोरम (गणपूर्ति) सदन के सदस्यों की वह संख्या है जोकि की सदन की कार्यवाई को शुरू करने के लिए न्यूनतम सदस्यों की संख्या को दर्शाती है।
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