हम जानते हैं की सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। तथा यह भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है। हड़प्पा सभ्यता की खोज से पहले तक हम वैदिक सभ्यता को ही सबसे प्राचीन मानते थे। भारत में अंग्रेजों ने जब खोज की तो पता चला कि हड़प्पा सभ्यता ही प्राचीनतम (सबसे पुरानी) है।
सिंधु घाटी सभ्यता भारत की ही नहीं अपितु विश्व की सबसे प्राचीन 4 सभ्यताओं में से एक है जिनमें नील नदी की सभ्यता जिसे हम मिस्र सभ्यता के नाम से जानते है। मेसोपोटामिया की सभ्यता, चीन की सभ्यता एवं भारत की सभ्यता जिसे हम सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जानते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में detail में हम नीचे पढ़ेंगे, जिसे मैंने कुछ हिस्सों में बाँटा हुआ है-
हड़प्पा सभ्यता की खोज
चार्ल्स मैसन
1826 में ब्रिटिश काल के एक अधिकारी चार्ल्स मैसन जब पाकिस्तान का दौरा कर रहे थे तब उन्होंने अपने शोध से पता लगाया कि उस स्थान पर कोई सभ्यता अवश्य रही होगी। इन्होंने अपनी पत्रिका (magazine) Narrative of Journeys में अपनी इस यात्रा के बारे में बताया था।
बर्टन बंधु
1856 में, कराची और लाहौर के बीच में रेल की पटरियों के निर्माण के समय वहाँ उपस्थित दो इंजिनीयर भाई जेम्स और विलियम को वहाँ कुछ पुरानी ईंटें मिलीं जिन्हें उन्होंने किसी पुरानी इमारत का हिस्सा समझ कर पटरी निर्माण के कार्य में ले लिया। यह जाने बिना की उस स्थान पर कोई प्राचीन सभ्यता रही होगी। इस संबंध में इन्होंने ज़्यादा शोध करने का प्रयास नहीं किया।
अलेक्जेंडर कनिंघम
1853 से 1856 में कनिंघम ने हड़प्पा क्षेत्र का कई बार दौरा किया, परंतु इन्हें भी कुछ खास पता नहीं लगा।
सर जॉन मार्शल
1921 में भारतीय पुरातात्विक विभाग के अध्यक्ष थे। तथा इन्हीं ने हड़प्पा में खुदाई का कार्य प्रारंभ करवाया। वहाँ दो नेतृत्वकर्ताओं दयाराम साहनी के नेतृत्व में हड़प्पा सभ्यता की खोज और राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में मोहनजोदड़ो सभ्यता की खोज की गयी।
मोहनजोदड़ो– सिंधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘मृतकों का टीला’।
हड़प्पा सभ्यता का काल
क्यूंकि काल के आधार पर हम यह कह सकते हैं की इस सभ्यता का काल क्या था? ये हम केवल पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर अंदाजा लगा सकते हैं। निश्चित रूप से उस समय का काल बताना लगभग मुश्किल है। अलग-अलग खोजकर्ताओं ने इस सभ्यता का कालखंड अलग बताया है। इनमें प्रमुख निम्न प्रकार हैं-
- जॉन मार्शल के अनुसार इस सभ्यता का काल 3250 BC से 2750 BC माना गया।
- C-14 (कार्बन-14) पद्धति, जिसमें जीवाश्म का अध्ययन करके उसकी आयु का पता लगाया जाता है। उसके अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता से मिले जीवाश्म के अध्ययन से उनकी आयु 2300 BC से 1750 BC पायी गई तथा इसका श्रेय डी. पी. अग्रवाल को जाता है।
- सभी पुरातत्ववेत्ताओं के अलग-अलग विचारों के बाद इस काल को 2500 से 1700 BC माना जाता है। जिस पर अधिकतर इतिहासकार अपनी सहमति देते हैं।

सभ्यता का नामकरण
- सिंधु नदी के किनारे मिलने के कारण इस सभ्यता को सिंधु नदी की सभ्यता का नाम दिया गया।
- समय के साथ सिंधु नदी के साथ-साथ सरस्वती नदी के किनारे भी इस सभ्यता के अवशेष पाए जाने लगे। जिसके बाद इसे सिंधु-सरस्वती सभ्यता का नाम दिया गया।
- सभ्यताओं के नाम में मतभेद ना हो इसलिए जिस स्थल से उस सभ्यता के अवशेष सबसे पहले मिलते हैं, उस सभ्यता को उस स्थान का ही नाम दे दिया जाता है। और क्यूंकि सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष सबसे पहले हड़प्पा (अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में) से मिले थे तो इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता सर्वसम्मति से रख दिया गया।
सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव
विदेशी मत
चूंकि मैसोपोटामिया की सभ्यता हड़प्पा के सबसे पास थी और उसे सुमेरियन सभ्यता कहा जाता था, तथा इसी तथ्य को आधार बनाकर कुछ विदेशी इतिहासकारों ने यह मत व्यक्त किया कि हड़प्पा सभ्यता का निर्माण सुमेरियन सभ्यता के लोगों द्वारा किया गया। जिनमें प्रमुख नाम इस प्रकार हैं- जॉन मार्शल, व्हीलर, चाइल्ड, डी. डी. कौशांबी आदि है।
स्वदेशी मत
कुछ भारतीय इतिहासकारों तथा कुछ विदेशी पुरतत्वेताओं का यह मानना है की हड़प्पा सभ्यता को भारतीयों ने ही विकसित किया है तथा यह यहीं के लोगों ने बनाई थी।
राखल दास ने यह तर्क दिया की हड़प्पा सभ्यता के लोग और कोई नहीं बल्कि द्रविड़ जाति के लोग ही थे।
वहीं टी. एन. रामचन्द्र और लक्ष्मणस्वरूप पुसालकर ने का यह तर्क रहा की इस सभ्यता के लोग आर्य थे।

सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं
नगरीय व्यवस्था
भारत में नगरीय सभ्यता का जन्म सिंधु घाटी सभ्यता को ही माना जाता है। नगरीय का स्वरूप का विकास भी यहीं से हुआ ऐसे हम कह सकते हैं। नगरीय व्यवस्था के विभिन्न स्वरूप जैसे- पक्के घर, चौड़ी सड़कें, पक्की नालियाँ इस सभ्यता में देखने को मिलते हैं, जो कि व्यापार प्रधान नगर हुआ करते थे उनमें यह सारी विशेषताएं थीं।
कांस्ययुगीन सभ्यता
इस सभ्यता में सबसे अधिक कांस्य का प्रयोग हुआ जिस कारण इस सभ्यता को कांस्ययुगीन सभ्यता कहा जाता है।
आद्येतिहासिक सभ्यता
यह ऐसी सभ्यता है जिसकी लिखित जानकारी तो मिली है परंतु उसे अब तक पढ़ा नहीं गया है। लिखित जानकारी चित्रलिपी में थी, जिसे पढ़ने का प्रयास अब तक सफल नहीं हुआ है।
शांतिप्रिय सभ्यता
इस सभ्यता की खुदाई के दौरान किसी भी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र नहीं मिले, जिससे यह माना जाता है कि इस सभ्यता के लोग शांतिप्रिय रहे होंगे। जबकि अन्य प्राचीन सभ्यताओं से युद्ध के प्रमाण मिले हैं।
व्यापार-प्रधान
जहाँ प्राचीन सभ्यताएं कृषि प्रधान हुआ करती थीं, वहीं हड़प्पा सभ्यता व्यापार-प्रधान होने के प्रमाण मिले हैं। क्यूंकि नगर मुख्यतः व्यापार के केंद्र होते हैं।
विस्तृत सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार बहुत बड़े क्षेत्र में था। यह अन्य सभी सभ्यताओं से कई गुना अधिक बड़ी थी।
राजनीतिक व्यवस्था
क्यूंकि इस सभ्यता के बारे में हमें पुरातात्विक स्रोतों से ही पता चलता है तो यह अनुमान लगाना कठिन है कि इस सभ्यता में राज्य व्यवस्था कैसी रही होगी, जबकि कुछ विशेषज्ञों में इस बात को लेकर मतभेद भी है की पुरोहितों के आदेश माने जाते थे या प्रजातन्त्र था।
आर्थिक विशेषता
आर्थिक क्रियाओं में कृषि, पशुपालन प्रमुख थे। तथा इस काल में देशीय व विदेशी दोनों प्रकार का व्यापार भी प्रचलित था।
सामाजिक व्यवस्था
सिंधु घाटी सभ्यता के लिखित स्रोतों को ना पढे जाने के कारण यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि इस सभ्यता में समाज कैसा था या कितने वर्गों में विभाजित था। परंतु जैसा की पुरातात्विक स्रोतों से पता चलता है कि इस सभ्यता में दो प्रकार के भवन होते थे जिनमें से एक प्रकार के भवन बड़े होते थे तथा ऊंचाई पर बने होने के कारण इन्हें उच्च नगर कहा गया, तथा टीले के नीचे की ओर बने भवन छोटे पाए गए इसलिए उन्हे निम्न नगर कहा गया है। ऐसे ही कहा जाता है कि इस सभ्यता का समाज संभवतः दो वर्गों में विभाजित रहा होगा।
सांस्कृतिक
सांस्कृतिक विशेषतों में हम कह सकते हैं की इस सभ्यता के लोगों को लिपि, माप-तोल, मूर्तिकला, मिट्टी के बर्तन, धातुओं का ज्ञान था, जो कि हमें इनकी सांस्कृतिक कलाओं के ज्ञान के बारे में दर्शाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
सिंधु घाटी सभ्यता भारत के उत्तर-पश्चिम में सिंधु नदी के किनारे स्थित थी।
यह सभ्यता जम्मू-कश्मीर के माँदा से बलूचिस्तान के सुत्कागेडोर (वर्तमान में पाकिस्तान में) तक और उत्तर-प्रदेश के आलमगीरपुर से महाराष्ट्र के दाइमाबाद तक फैली हुई थी। यह लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई सभ्यता थी। जो की वर्तमान समय में भी अपनी खोजों के साथ बढ़ती जा रही है। इन सभी स्थानों की यह विशेषता देखी जा सकती है कि यह सभी नदियों के किनारों पर बसे हैं।
हड़प्पा सभ्यता के नदियों के किनारे बसे नगर
नगर | जिस नदी के किनारे बसे हैं |
माँदा (जम्मू-कश्मीर) | चिनाब |
सुत्कागेडोर (बलूचिस्तान) | दास्क नदी |
आलमगीरपुर (उत्तर-प्रदेश) | हिंडन नदी |
दाइमाबाद (महाराष्ट्र) | गोदावरी नदी |
पूरब में सुत्कागेडोर से पश्चिम में आलमगीरपुर तक यह लगभग 1600 किलोमीटर तक फैली हुई है, तथा उत्तर में माँदा से दक्षिण में दाइमाबाद तक यह लगभग 1400 किलोमीटर में फैली हुई सभ्यता रही है।
इस प्रकार यह एक विस्तृत सभ्यता का निर्माण करती है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है की सिंधु घाटी सभ्यता मैसोपोटामिया तथा मिस्र की सभ्यताओं को जोड़ कर भी उन दोनों से लगभग 12 गुना बड़ी सभ्यता थी।

इस सभ्यता के स्थल तीन देशों में प्राप्त होते हैं- अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं भारत।
आरंभिक खोज में इस सभ्यता के 40-50 स्थल खोजे गए थे, जो कि वर्तमान में लगभग 1500 हो गए हैं। जिसमें सबसे अधिक 900 से अधिक भारत में, 2 स्थल अफगानिस्तान में तथा अन्य स्थल पाकिस्तान में पाए गए हैं।
तांबा और टिन के मिश्रण से कांस्य धातु बनाई गई।
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