यह सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की तीसरी post है और इससे पहले हम सिंधु घाटी सभ्यता- 1 तथा सिंधु घाटी सभ्यता-2 में इस सभ्यता के बहुत से पहलुओं को देख चुके हैं। अब हम इस सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को पढ़ेंगे तथा इस सभ्यता के जीवन के भी सभी पहलुओं के बारे में भी जानेंगे।

हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उनकी विशेषताएं
प्रमुख स्थल | नदी | खोजकर्ता | मुख्य विशेषता |
हड़प्पा (पाकिस्तान के मोंटगोमरी जिले में) | रावी | दयाराम साहनी (1921 में) | सबसे पहले खोजा गया स्थल, विशाल अन्नागार, कांस्य दर्पण, R-37 (कब्रिस्तान), श्रमिकों के आवास के प्रमाण |
मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान के लरकाना जिले में) | सिंधु (दाहिने तट पर) | राखलदास बनर्जी (1922) | हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल, विशाल अन्नागार, विशाल स्नानागार, कांस्य की नर्तकी की मूर्ति, पुरोहित की मूर्ति, महाविद्यालय, मुद्राओं पर शृंगी पशु की आकृति |
लोथल (गुजरात के अहमदनगर जिले में) | भोगवा | रंगनाथ राव (1957) | गोड़ीबाड़ा (पत्तन/ बंदरगाह) के अवशेष, चावल और अग्निकुंड के अवशेष, हाथी दाँत के अवशेष, तीन युगल समाधियाँ, घोड़े की मिट्टी की मूर्ति |
कालीबंगा (राजस्थान के हनुमानगढ़ में) | घग्घर | अमलानन्द घोष | चूड़ियाँ, जुते हुए खेत के साक्ष्य, हवन-कुंड के प्रमाण, भूकंप के साक्ष्य भी यहाँ से प्राप्त हुए हैं। |
राखीगढ़ी (हरियाणा के हिसार जिले में) | घग्घर | सूरजभान | भारत में स्थित इस सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है, ताम्र उपकरण |
चन्हुदड़ों (पाकिस्तान के सिंध प्रदेश से प्राप्त हुआ है) | सिंधु | अन्नरेस्ट मैके और मजूमदार | मनके बनाने का कारखाना, कंघा, काजल, लिप्स्टिक, पाउडर आदि शृंगार के सामान के अवशेष, बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के निशान |
बनावली (हरियाणा के हिसार जिले में) | सरस्वती | आर. एस. बिष्ट | मिट्टी के हल का प्रमाण, (टेराकोटा से बने खिलौने के रूप में) |
रोपड़ (पंजाब के रूपनगर में) | सतलज | यज्ञदत्त शर्मा | तांबे की कुल्हाड़ी |
रंगपुर (गुजरात के अहमदाबाद से) | भादर | एस. आर. राव | धान की भूसी, ज्वार, बाजरा |
सुरकोटदा (गुजरात के कच्छ से) | सरस्वती | जे. पी. जोशी | घोड़े की हड्डी, कलश शवधान, तराजू (तराजू के पैमाने सभी स्थानों से 16 के गुणज अनुपात में मिलें हैं) |
हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण
हम पढ़ चुके हैं की हड़प्पा सभ्यता लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी, जो बाद में अन्य खोजों के बाद लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई पायी गई। इस सभ्यता के पतन के संबंध में अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग राय दी है। कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
- अनरेस्ट मैके एवं जॉन मार्शल– मैके व मार्शल का मानना था की हड़प्पा सभ्यता का अंत बाढ़ के कारण हुआ तथा बाढ़ को ही अधिकांश विद्वान भी अपनी स्वीकृति देते हैं।
- चाइल्ड एवं व्हीलर– इनका मानना था कि इस सभ्यता के पतन का कारण विदेशी आक्रमण को मानते हैं। इनके अनुसार आर्यों ने आक्रमण कर सिंधु सभ्यता का विनाश किया तथा बाद में वहाँ अपनी सभ्यता का निर्माण किया।
- फेयर सर्विस– इनका कहना है की पारिस्थितिकी असंतुलन यानि जलवायु परिवर्तन के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ।

कब्रिस्तान संबंधी महत्वपूर्ण तथ्य
- हड़प्पा सभ्यता में तीन प्रकार के कब्रिस्तानों के प्रमाण मिले हैं। इस सभ्यता में शवों को जलाने और दफनाने दोनों तरह की विधि मिली है।
- पहला जोकि हड़प्पा से प्राप्त हुए हैं वे दफनाए गए शवों के कब्रिस्तान के अवशेष मिले हैं।
- दूसरे मोहनजोदड़ों से प्राप्त हुए हैं वे शवों को जलाने के कब्रिस्तान मिलें हैं।
- तीसरे प्रकार के कब्रिस्तान जोकि इस सभ्यता के सुरकोटदा से मिलें हैं, वहाँ शव के अंगों को कलश में कर के दफनाने के साक्ष्य मिले हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता में जीवन के विभिन्न क्षेत्र
किसी भी सभ्यता को समझने के लिए उस सभ्यता के सभी पहलुओं आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक को समझना आती आवश्यक हो जाता है, और जब हम किसी सभ्यता की बात करते हैं तो यह और भी अधिक जरूरी हो जाता है कि हम उस समय के सभी पहलुओं का अध्ययन अच्छे से करें। हड़प्पा सभ्यता के इन्हीं पहलुओं को हम समझने के लिए निम्न बिंदुओं की सहायता ले सकते हैं-
राजनैतिक जीवन
सिंधु सभ्यता में राजनैतिक जीवन कैसा था? यहाँ प्रजातन्त्र था या नहीं? राजतन्त्र था? कैसी राजनैतिक स्थिति थी? इन सब के बारे में क्योंकि लिखित स्रोत नहीं मिले हैं जो मिले हैं वो पढे नहीं गए हैं अभी तक। इसीलिए पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर ही विद्वानों ने अनुमान लगाए हैं कि हड़प्पा सभ्यता में यहाँ की राजनैतिक स्थिति कैसी रही होगी?
- स्रोतों के अभाव में कोई वास्तविक प्रमाण नहीं है। जो प्रमाण हैं उन्हे पढ़ा नहीं गया है अभी तक।
- यह संभव है की व्यापारियों या पुरोहितों द्वारा (खुदाई में मिली पुरोहित की मूर्ति के आधार पर) शासन व्यवस्था चलाई जाती रही होगी अन्यथा वर्तमान समय की तरह ही वहाँ भी नगर व्यवस्था संचालित की गई होगी।
- पिगट ने कहा है की हड़प्पा और मोहनजोदड़ो इस सभ्यता की जुड़वा राजधानियाँ रही होंगी।
- हंटर ने कहा है की मोहनजोदड़ो के शासन को राजतंत्रात्मक न मानकर जनतंत्रात्मक माना जाना चाहिए।
- क्यूंकि यहाँ से किसी भी महल के प्रमाण नहीं मिले हैं, तथा अस्त्र-शस्त्र भी उतनी मात्रा में नहीं मिले हैं।

सामाजिक जीवन
- समाज की सबसे छोटी इकाई के रूप में परिवार रहा होगा तथा संभवतः यहाँ का समाज भी मातृसत्तात्मक था। (मातृदेवी, उर्वरता की देवी के पूजा के प्रमाण मिले हैं)
- वर्ण व्यवस्था का कोई प्रमाण नहीं मिलता। परंतु फिर भी समाज में कई प्रकार के वर्ण देखने को मिलते हैं, संभवतः यह पेशे आधारित वर्ण रहे होंगे जैसे- पुरोहित, व्यापारी, श्रमिक, शिल्पी।
- किसी प्रकार के युद्ध अस्त्र-शस्त्र नहीं मिलना यह दर्शाता है की अवश्य ही इस सभ्यता के लोग शांति-प्रिय रहे होंगे।
- हड़प्पा सभ्यता के लोग शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार के रहे होंगे, क्योंकि खुदाई में रसोई से मछली के कांटे मिले हैं।
- संभवतः इस सभ्यता के पुरुष एवं स्त्रियाँ दोनों ही आभूषण पहनते थे, (चन्हुदड़ो में मनके बनाने का कारखाना मिला है)। वस्त्रों में भी सूती वस्त्रों के साथ-साथ ऊनी वस्त्रों का भी प्रयोग इस सभ्यता के लोग करते थे।
- मनोरंजन के रूप में यहाँ के लोग पासे खेलना, नृत्य करना, शिकार करना, पशुओं की लड़ाई कराने जैसे कार्य करते रहे होंगे।

आर्थिक जीवन
कृषि
सिंधु घाटी सभ्यता से कृषि के बहुत से प्रमाण मिले हैं, टेराकोटा से बने हल के प्रमाण, जुते हुए खेत के साक्ष्य कालीबंगा से। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि इस सभ्यता के लोग जुताई, बुवाई, सिंचाई से परिचित थे। फसलों में भी गेहूँ, जौं, मटर, कपास जैसी फसलों से ये परिचित थे। कपास का प्रयोग सूती वस्त्रों के रूप में इस सभ्यता से ही माना जाता है। कम मात्रा में चावल के भी प्रमाण हमें इस सभ्यता से मिले हैं।
पशुपालन
प्रिय पशु के रूप में कूबड़ वाले सांड का प्रयोग देखने को मिलता है। एक सिंग वाले गेंडे का चित्र मिला है, जिसे केवल काल्पनिक पशु माना गया है। गाय, घोड़े से भी इस सभ्यता के लोग परिचित थे।
उद्योग
इस सभ्यता का प्रमुख उद्योग सूती वस्त्र उद्योग को ही माना गया है क्यूंकि हड़प्पा सभ्यता के लोग कपास से सबसे पहले परिचित हुए तो सूती वस्त्र उद्योग भी यहाँ काफी प्रचलित रहा होगा। इसी सूती वस्त्र का व्यापार विदेश में भी किया जाता रहा होगा। बर्तन एवं शिल्प से जुड़े उद्योग भी इस सभ्यता में होते थे।
व्यापार
हड़प्पा सभ्यता के लोग आंतरिक एवं बाहरिक दोनों प्रकार के व्यापार से परिचित थे। पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, ईरान, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया तथा मिस्र के क्षेत्रों से भी व्यापार के प्रमाण मिले हैं। चूंकि इस समय तक सिक्के या मुद्रा की खोज नहीं हुई थी तो वस्तु ही विनिमय का आधार रही होगी।
निर्यात
सूती वस्त्र, हाथी दांत, इमारती लकड़ी आदि के निर्यात के प्रमाण मिले हैं।
आयात
- चांदी– ईरान और अफगानिस्तान से,
- टिन– अफगानिस्तान से,
- तांबा– राजस्थान के खेतड़ी से,
- लाजवर्द– मेसोपोटामिया से मँगवाया जाता था।

धार्मिक जीवन
- सिंधु घाटी सभ्यता में धर्म तो था परंतु धर्म समाज के केवल एक अंग की तरह था, ना कि वह समाज पर हावी था। यह एक लौकिक सभ्यता थी अर्थात् जिसे हम देखते हैं उसी पर विश्वास करते हैं।
- धर्म वर्चस्वशाली नहीं था।
- हड़प्पा सभ्यता से धर्म के पूजा-पाठ के सभी प्रमाण मिले हैं लेकिन मंदिर का कोई प्रमाण नहीं मिला है।
- मातृदेवी की मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली है, जिससे मातृदेवी की पूजा का प्रमाण मिले है।
- हड़प्पा से उर्वरता देवी या पृथ्वी देवी की मूर्ति मिली है जिसमें देवी के पेट से एक पौधे को निकलते हुए दिखाया गया है।
- हड़प्पा में एक मोहर से एक तीन मुख वाले देवता के प्रमाण मिले हैं जिनके चारों ओर बहुत से पशु बैठे हुए हैं। इन पशुओं पर नियंत्रण स्थापित करने वाले देवता को पशुपतिनाथ कहा गया है। इस सभ्यता के प्रमुख देवता के रूप में इन्हीं को जाना जाता है।
- इस सभ्यता में नाग पूजा, लिंग-योनि की पूजा, स्वास्तिक चिन्ह, वृक्ष की पूजा, पशु-पूजा आदि के भी प्रमाण मिले हैं।
- अग्निकुंड के प्रमाण लोथल और कालीबंगा से मिले हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य-
- प्रकृति से प्राप्त सभी ऐसी वस्तुएं जो हितकारी थीं उनकी पूजा।
- गन्ना और रागी का कोई प्रमाण नहीं मिल है।